कोलकाता। सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (आफस्पा) को निरस्त करने की मांग को लेकर 16 साल तक भूख हड़ताल पर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने असम, नगालैंड और मणिपुर में इस कानून के दायरे में आने वाले क्षेत्रों की संख्या कम करने के केंद्र के फैसले का स्वागत किया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह कठोर, औपनिवेशिक कानून पूरी तरह से वापस लिया जाना चाहिए।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बृहस्पतिवार को पूर्वाेत्तर के उन तीन राज्यों में अशांत क्षेत्रों की संख्या में कमी की घोषणा की, जहां सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम, 1958 लागू है। मणिपुर की लौह महिला के रूप में मशहूर शर्मिला ने आफस्पा को दमनकारी कानून करार दिया और कहा कि यह कभी भी उग्रवाद से निपटने का समाधान नहीं रहा है।
ेसाक्षात्कार के दौरान कहा, मैं आफस्पा के दायरे में आने वाले क्षेत्रों की संख्या कम करने के केंद्र के फैसले का स्वागत करती हूं। यह सही दिशा में उठाया गया एक सकारात्मक कदम है। लेकिन कानून को निरस्त किया जाना चाहिए क्योंकि यह कोई समाधान नहीं है। शर्मिला ने कहा, भारत एक लोकतांत्रिक देश है।
हम इस औपनिवेशिक कानून को कब तक बरकरार रखेंगे? लोग इसका खामियाजा क्यों भुगतें? उग्रवाद से लड़ने के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद किए जाते हैं जिनका उपयोग पूर्वाेत्तर के समग्र विकास के लिए किया जा सकता है। आफस्पा प्रगति की राह में एक रोड़ा है।
शर्मिला ने आफस्पा के खिलाफ 16 साल चली अपनी भूख हड़ताल 2016 में समाप्त कर दी थी। नगालैंड में दिसंबर, 2021 में सेना के जवानों द्वारा 14 असैन्य नागरिकों के कथित तौर पर मारे जाने के बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गयी थी और लोगों ने आफस्पा हटाने की मांग की थी। मांग पर विचार करने के लिये केंद्र ने एक उच्चस्तरीय समिति गठित की थी। शर्मिला ने कहा, मणिपुर में कानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी खराब नहीं है कि आफस्पा लगाया जाए।
इसके लागू होने से केवल नौकरशाहों और राजनेताओं को ही लाभ मिलता है। इससे बेरोजगार युवाओं में गलतफहमी पैदा होती है। आम लोग ही इसके शिकार होते हैं। उन्होंने कहा, आप ताकत के दम पर लोगों को नहीं जीत सकते।
सरकार को पूर्वाेत्तर के लोगों का दिल जीतने की कोशिश करनी चाहिए। एक बार जब आम लोगों और सत्ता में बैठे लोगों के बीच वास्तविक संबंध बन जाएंगे, तो चीजें बेहतर होंगी।