हरिशंकर व्यास
भारत पूंजीवाद का नया इतिहास रच रहा है! भारत मानों गौतम अडानी का गिरवी हो गया है! यदि अडानी ग्रुप का कोई भी भंडा फूटे तो वह दुश्मन के ‘डीप स्टेट’ की साजिश है! उसकी बात करना, उस पर संसद में बहस चाहना विपक्ष का देशद्रोह है। भारत को अस्थिर बनाना है। सीधे प्रधानमंत्री पर हमला है! सत्ता और सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ साजिश है! दुनिया की नंबर एक महाशक्ति अमेरिका के ‘डीप स्टेट’ का भारत पर हमला है! इसलिए हम अमेरिका को एक्सपोज करेंगे। अमेरिका से लड़ेंगे।
विपक्ष की बोलती बंद करेंगे। विपक्ष, नेता विपक्ष राहुल गांधी, सोनिया गांधी और उस नेहरू-गांधी परिवार को देशद्रोही करार देंगे, जिसने देश को पचास साल चलाया।
यह परिवार अमेरिका, उसकी संस्थाओं, उसकी ‘डीप स्टेट’ का पि_ू है। ये भारत के जगत सेठ गौतम अडानी के खिलाफ इसलिए बोल रहे हैं क्योंकि इसने अमेरिका और दुनिया के खरबपति पूंजीपतियों को पछाड़ा है।
वे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व-कृतित्व की उस इकलौती उपलब्धि, 140 करोड़ भारतवासियों की आन-बान-शान के विरोधी हैं, जबकि वह सवा सौ करोड़ भूखों के फ्री लंगर की शान है। देश-दुनिया में मोदी की आन है, जिससे भारत सोने की चिडिय़ा बना है। दुनिया में, पूंजीवाद के इतिहास का ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जो अडानी का है। इतिहास में नए पुराने जितने खरबपति-अरबपति हुए हैं उनमें आज तक ऐसा एक भी पूंजीपति नहीं हुआ है जिस पर गोलमाल के आरोप लगे और वह राष्ट्र का गौरव बने! उसकी रक्षा के लिए राष्ट्र, सरकार, संसद सब कुरबान हो तथा विपक्ष या विरोधी भ्रष्टाचार का शोर करें तो ससंद में बहस न हो। मीडिया खबरें न छापे। और अडानी के लिए सरकार, उसके चेहरे सब वैसी ही जनसंपर्क, लॉबी की भूमिका में हों जैसे कभी धीरूभाई अंबानी के लिए दिल्ली में बालू और टोनी किया करते थे। अंबानी पर भी कई बार बवाल हुए। लेकिन मुझे ध्यान नहीं है कि इंदिरा गांधी, प्रणब मुखर्जी या किसी भी सरकार ने धीरूभाई अंबानी को भारत की आन-बान-शान करार दे कर उनके खिलाफ अमेरिका की ‘डीप स्टेट’ या सीआईए की साजिश बताई हो। या संसद में बहस नहीं होने दी हो। या वाणिज्य, वित्त आदि की किसी भी भूमिका में प्रणब मुखर्जी ने रिलायंस का बचाव किया हो। इसलिए समकालीन इतिहास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने अडानी के लिए देश के विपक्ष, राहुल गांधी-सोनिया गांधी, अमेरिका, ‘डीप स्टेट’ आदि पर हमले का जो कर्म किया है वह न केवल पूंजीवाद और आजाद भारत के इतिहास की अनहोनी है, बल्कि यह सवाल भी बनाते हुए है कि अडानी पर हल्ला क्या मोदी सरकार की अस्थिरता है?
ऐसा कैसे है कि गली-गली में शोर अडानी का है और घबराई हुई सरकार है! इतना ही नहीं भाजपा और उसके प्रवक्ता सब अडानी के कारतूस बने हुए हैं! यदि अमेरिकी ‘डीप स्टेट’, अस्थिरता की साजिश, राहुल-सोनिया देशद्रोही, वित्तीय गोलमाल जैसी बातें हैं तो इसके लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस विदेश मंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसों को करनी चाहिए या नहीं? अडानी ग्रुप न भाजपा सदस्य है और न आरएसएस का स्वंयसेवक है। और यदि वह चंदा या गुरू दक्षिणा देता भी हो तब भी वैश्विक बदनामी (याद करें और उन रिपोर्टों को पढ़ें, जिनमें अडानी के ठेके को रद्द करते हुए केन्या की संसद ने कैसी तालियां बजाईं तथा लोगों ने भारतीयों पर कैसी टिप्पणियां कीं) की हकीकत में संघ परिवार उसके लिए क्योंकर लाठी ले कर खड़ा होगा? चाल, चेहरे, चरित्र का कोई लोकलाज नहीं? सोचें, अडानी, हिंडनबर्ग रिपोर्ट, हेज फंड मैनेजर 92 वर्षीय सोरोस की तुकबंदी से भाजपा कह रही है कि सबके पीछे उद्देश्य मोदी सरकार को अस्थिर करना है। कांग्रेस नेतृत्व (राहुल गांधी, सोनिया गांधी) देश और अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने के लिए जॉर्ज सोरोस के पेरोल पर हैं। भारत के खिलाफ गतिविधियों में अमेरिका के डीप स्टेट का हाथ है।
ऐसी कथित भयावह साजिश के बावजूद सरकार से अधिकृत या विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का एक शब्द नहीं बोलना।
अडानी पर आरोप और सीधे अमेरिका की ‘डीप स्टेट’ की साजिश का प्रोपेगेंडा! जबकि हाल में अमेरिकी अदालत ने खालिस्तानी पन्नू की हत्या की साजिश में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, पूर्व रॉ चीफ, ऱॉ एजेंट व एक कारोबारी को समन जारी किया मगर तब तो सरकार और भाजपा ने एक शब्द इनके बचाव में नहीं बोला।
तब अमेरिकी ‘डीप साजिश’ का हल्ला नहीं था। लेकिन अडानी की ऐसी चिंता जो संसद का पूरा सत्र इसलिए कुरबान क्योंकि राहुल गांधी ने अडानी पर लगे आरोपों पर बहस चाही! अमेरिकी अदालत से अडानी ग्रुप को समन है तो भारत के सुरक्षा प्रमुख अजित डोवाल पर भी अमेरिकी अदालत की कारवाई है। एक का कारोबारी-सिविल मामला है तो दूसरा हत्या की साजिश का फौजदारी मुकद्दमा।
सोचें, भारत राष्ट्र-राज्य की आन-बान-शान के लिए कारोबारी-सिविल-भ्रष्टाचार का आरोप अधिक चिंता वाला होना चाहिए या फौजदारी का? प्रधानमंत्री मोदी, सत्तारूढ़ पार्टी को अजित डोवाल एंड पार्टी की रक्षा में संसद में या बाहर यह हल्ला क्या नहीं करना चाहिए था कि अमेरिका की ‘डीप स्टेट’ भारत के खुफिया प्रमुखों को कटघरे में खड़ा कर भारत को अस्थिर कर रही है? लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भारत अडानी की बदनाम गौरव गाथा पर कुरबान है न कि भारत की सुरक्षा के रणबांकुरों (डोवाल एंड पार्टी) का अहसानमंद! इस अंतर से क्या साबित होता है? तभी सोचें, प्रधानमंत्री मोदी के लिए उपयोगी कौन अधिक रहा है? अडानी या डोवाल?
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