शमशाबाद। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शमशाबाद में 11 वीं शताब्दी के भक्ति संत श्री रामानुजाचार्य की स्मृति में 216 फीट ऊंची प्रतिमा श्स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटीश् का अनावरण किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य जी की इस भव्य विशाल मूर्ति के जरिए भारत मानवीय ऊर्जा और प्रेरणाओं को मूर्त रूप दे रहा है। रामानुजाचार्य जी की ये प्रतिमा उनके ज्ञान, वैराग्य और आदर्शों की प्रतीक है। स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी से युवाओं का उत्साह बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है, जिसके मनीषियों ने ज्ञान को खंडन-मंडन, स्वीकृति-अस्वीकृति से ऊपर उठकर देखा है। हमारे यहां अद्वैत भी है, द्वैत भी है। इन द्वैत-अद्वैत को समाहित करते हुये श्रीरामानुजाचार्य जी का विशिष्टा-द्वैत भी है। उन्होंने कहा कि रामानुजाचार्य जी के ज्ञान की एक अलग भव्यता है। साधारण दृष्टि से जो विचार परस्पर विरोधाभासी लगते हैं। रामानुजाचार्य जी उन्हें बड़ी सहजता से एक सूत्र में पिरो देते हैं। आज जब दुनिया में सामाजिक सुधारों की बात होती है, प्रगतिशीलता की बात होती है, तो माना जाता है कि सुधार जड़ों से दूर जाकर होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मुझे विश्वास है कि रामानुजाचार्य जी की यह प्रतिमा ना केवल आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगी बल्कि भारत की प्राचीन पहचान को भी मज़बूत करेगी। उन्होंने कहा कि आज जब दुनिया में सामाजिक सुधारों की बात होती है, प्रगतिशीलता की बात होती है, तो माना जाता है कि सुधार जड़ों से दूर जाकर होगा। लेकिन, जब हम रामानुजाचार्य जी को देखते हैं, तो हमें अहसास होता है कि प्रगतिशीलता और प्राचीनता में कोई विरोध नहीं है। ये जरूरी नहीं है कि सुधार के लिए अपनी जड़ों से दूर जाना पड़े। बल्कि जरूरी ये है कि हम अपनी असली जड़ो से जुड़ें, अपनी वास्तविक शक्ति से परिचित हों। उन्होंने कहा कि एक ओर रामानुजाचार्य जी के भाष्यों में ज्ञान की पराकाष्ठा है, तो दूसरी ओर वो भक्तिमार्ग के जनक भी हैं। एक ओर वो समृद्ध सन्यास परंपरा के संत भी हैं, और दूसरी ओर गीता भाष्य में कर्म के महत्व को भी प्रस्तुत करते हैं। वो खुद भी अपना पूरा जीवन कर्म के लिए समर्पित करते हैं।
मोदी ने कहा कि आज से एक हजार साल पहले तो रुढियों और अंधविश्वास का दबाव कितना ज्यादा रहा होगा। लेकिन रामानुजाचार्य जी ने समाज में सुधार के लिए समाज को भारत के असली विचार से परिचित कराया। उन्होंने दलितों, पिछड़ों को गले लगाया। उस समय जिन जातियों को लेकर कुछ और भावना थी, उन जातियों को उन्होंने विशेष सम्मान दिया। उन्होंने कहा कि आज रामानुजाचार्य जी की विशाल मूर्ति ैजंजनम व िम्ुनंसपजल के रूप में हमें समानता का संदेश दे रही है। इसी संदेश को लेकर आज देश ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ के मंत्र के साथ अपने नए भविष्य की नींव रख रहा है। विकास हो, सबका हो, बिना भेदभाव हो, सामाजिक न्याय, सबको मिले, बिना भेदभाव मिले। जिन्हें सदियों तक प्रताड़ित किया गया, वो पूरी गरिमा के साथ विकास के भागीदार बनें, इसके लिए आज का बदलता हुआ भारत, एकजुट प्रयास कर रहा है।