कौन बो रहा है नफरत के बीज? 186 चिट्ठी के जवाब में पीएम मोदी को 386 लोगों का लेटर

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नयी दिल्ली। हाल ही में 108 पूर्व नौकरशाहों ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी थी और देश में नफरत की राजनीति के खिलाफ पीएम मोदी से संदेश देने की अपील भी की थी। अब 386 लोगों ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी है। पत्र लिखने वाले 197 रिटार्ड जज, 97 पूर्व नौकरशाह और 92 पूर्व सैन्य कर्मियों ने पीएम के विरोधियों पर नफरत की राजनीति करने का आरोप लगाया है। इस चिट्ठी में उन्होंने कहा है कि एजेंडा के तहत ऐसी चिट्ठी लिखी जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यानी जो 108 नौकरशाह के लिखे पत्र के जवाब में ये चिट्ठी आई है।

इस लेटर में कहा गया है कि हाल के दिनों में पीएम मोदी के सामने विपक्ष कहीं टिक नहीं सका। सच्चाई ये है कि ये लोग पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं और वो ही नफरत की राजनीति को हवा दे रहे हैं। पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की अभूतपूर्व हिंसा पर इस तथाकथित सीसीजी की चुप्पी का अध्ययन किया गया। जो इतना गंभीर था कि कोलकाता हाईकोर्ट को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को एक स्वतंत्र जांच करने के लिए बाध्य करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप एक रिपोर्ट की जोरदार आलोचना हुई। पश्चिम बंगाल सरकार और तृणमूल कांग्रेस-ने मुद्दों पर अपने निंदक और गैर-सैद्धांतिक दृष्टिकोण को उजागर किया। एक ही रवैया अलग-अलग राजनीतिक दलों द्वारा शासित विभिन्न राज्यों में कई हिंसक घटनाओं के प्रति उनकी प्रतिक्रियाओं को बताता है। रामनवमी, हनुमान जयंती, और राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और नई दिल्ली में अन्य पवित्र त्योहारों के दौरान जुलूस और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लक्षित करके गरीबों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। इस तरह की अध्ययन चूक वैधानिक आचरण के प्रति उनके लगाव को उजागर करती है।

बता दें कि 108 पूर्व नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। उन्होंने पत्र लिखकर उम्मीद जतायी कि वो नफरत की राजनीति को समाप्त करने का आह्वान करेंगे और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नियंत्रण वाली सरकारों में कथित तौर पर इस पर कठोरता से जोर दिया जा रहा है। पूर्व नौकरशाहों ने एक खुले पत्र में कहा, हम देश में नफरत से भरी तबाही का उन्माद देख रहे हैं, जहां बलि की वेदी पर न केवल मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्य हैं, बल्कि संविधान भी है। पत्र पर 108 लोगों ने हस्ताक्षर थे और इनमें दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह, पूर्व गृह सचिव जी. के. पिल्लई और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रधान सचिव टी. के. ए. नायर शामिल थे। पत्र में कहा गया है, ‘‘ पूर्व लोक सेवकों के रूप में, हम आम तौर पर खुद को इतने तीखे शब्दों में व्यक्त नहीं करना चाहते हैं, लेकिन जिस तेज गति से हमारे पूर्वजों द्वारा तैयारसंवैधानिक इमारत को नष्ट किया जा रहा है, वह हमें बोलने और अपना गुस्सा तथा पीड़ा व्यक्त करने के लिए मजबूर करता है।’’ इसमें कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों और महीनों में कई राज्यों – असम, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर मुसलमानों के प्रति नफरत व हिंसा में वृद्धि ने एक भयावह नया आयाम हासिल कर लिया है।

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