शनि जयंती पर करें प्रभावशाली मंत्रों का जाप, साढ़ेसाती-ढैय्या का दुष्प्रभाव होगा खत्म

शनि जयंती 19 मई को मनाई जाएगी। इस दिन ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि है। इस तिथि को शनि देव का जन्मदिन है, इसलिए इसे शनि अमावस्या भी कहते हैं। शनि जयंती के अवसर पर आप कर्मफलदाता शनि देव के प्रभावशाली मंत्रों का जाप करते हैं तो लाभ होगा। जिन लोगों पर शनि की महादशा यानि साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हैए, वे लोग अवश्य ही शनि जयंती पर शनि मंत्रों का जाप करके लाभ ले सकते हैं। जिनकी कुंडली में शनि दोष है, वे भी इन मंत्रों का जाप कर सकते हैं। इसके अलावा आप शनि जयंती पर शनि कवच का पाठ कर सकते हैं। शनि कवच का पाठ करने से शनि देव की कृपा मिलती है और वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। शनि कवच के अलावा शनि स्तोत्र का पाठ भी कल्याणकारी होता है, इससे शनि महाराज प्रसन्न होते हैं।

शनि देव के प्रभावशाली मंत्र और कवच के बारे में

शनिण्शनि महामंत्र
ओम निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥

शनि बीज मंत्र
ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।

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शनि रोग निवारण मंत्र
ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिहा।
कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।
दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं।।

राशि अनुसार शनि मंत्र
मेष: ओम शांताय नम:
वृष: ओम वरेण्णाय नम:
मिथुन: ओम मंदाय नम:
कर्क: ओम सुंदराय नम:
सिंह: ओम सूर्यपुत्राय नम:
कन्या: ओम महनीयगुणात्मने नम:
तुला: ओम छायापुत्राय नम:
वृश्चिक: ओम नीलवर्णाय नम:
धनु: ओम घनसारविलेपाय नम:
मकर: ओम शर्वाय नम:
कुंभ: ओम महेशाय नम:
मीन: ओम सुंदराय नम:

शनि कवच
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,
शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।

श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।

ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।
नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।

नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।

नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।
ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।

पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।
कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।

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