होली जीवन के रंगों का आलिंगनः कमलेश पटेल

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देहरादून। हार्टफ़ुलनेस ध्यान के मार्गदर्शक कमलेश पटेल (दाजी) का कहना है कि होली एक ऐसा त्यौहार है जो हमारे जीवन में ऊर्जा, आनंद, आशा, आकांक्षा, संबद्धता और व्यापकता लाता है, परिवर्तन और रूपांतरण का एक अवसर हमें देता है। इसमें निहित अनुराग और उदारता के कारण ही हम इसे” प्रेम का त्यौहार” “ रंगों का त्यौहार या “बसंत का त्यौहार” भी समझते हैं। आप जानते हैं क़ि होली किस तरह प्रारम्भ हुई ? हमारे प्राचीन भारतीय शास्त्रों में यह माना गया है कि होलिका एक दानव राजा हिरण्यकश्यपु की बहिन थी। जब वह बालक प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठी और उसके चारों और अग्नि जलाई गई तो वह तो जल गई लेकिन अग्नि बालक प्रह्लाद को स्पर्श भी ना करसकी ,उसका बाल भी बाँका ना हुआ और हिरण्यकश्यपु का यह बुरा इरादा अग्नि की लपटों में जलकर होलिका की चिता के साथ ही राख हो गया। इस प्रकार होली सभी प्रकार की बुराइयों के अंत के प्रतीक के रूप में मानी जाने लगी। दोनों ही तरह की बुराइयाँ, आंतरिक और बाह्य।

आइए हम रंगों के इस त्यौहार से कुछ सीखने और इसे अपने जीवन में आत्मसात् करने के लिए इस वर्ष इसे कुछ भिन्न दृष्टि से देखें । एक क्षण के लिए कल्पना करें ,कि संसार में सिर्फ़ दो ही रंग हैं। सफ़ेद और काला। तब प्रकृति द्वारा दिए गए अनेक रंगों से भरे इस संसार को देखने के बाद कोई भी ऐसे निष्प्रभ और अकल्पनीय जगत में नहीं रहना चाहेगा। जीवन हमारे मार्ग मे बहुत कुछ प्रस्तुत करता है, बहुत कुछ अनुभव कराता है , बहुत कुछ सिखाता है। लेकिन हमारा मस्तिष्क पूरे संसार को इन दो ही रंगो में देखता है। हमने अपना जीवन, अच्छा-बुरा, सही-ग़लत, सरल और जटिल, सुख-दुःख, अमीर और गरीब, सफल और विफल ,इसी तरह यह सूची और लम्बी हो सकती है, की श्रेणी में ही प्रतिबंधित कर रखा है ।हम निरंतर आंतरिक द्वंद्व से घिरे रहते हैं, क्योंकि हम बिना कुछ सोचे समझे अपना जीवन इसी तरह के चरम भाव में जी रहे हैं। हम “मध्य भाव” से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। हम यह देख ही नहीं पाते कि जीवन हमारे समक्ष कई शेड्स प्रस्तुत करता है उनमें से प्रत्येक की अपनी सुंदरता, उपयोगिता और महत्ता है।

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