अखिलेश क्यों नहीं दिखा रहे शिवपाल को साथ रखने में दिलचस्पी, चाचा-भतीजे के बीच शीत युद्ध से बिखर जाएगा यादव परिवार?

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लखनऊ। देश की राजनीति में अगर सबसे ताकतवर परिवार किसी को माना जाता है तो वो कांग्रेस के बाद यादव परिवार है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने सालों तक सत्ता का सुख भोगा है। मुलायम सिंह यादव से लेकर उनके बेटे अखिलेश यादव तक जनता का बहुमत पाकर मुख्यमंत्री बन चुके हैं। यादव परवार की नींव काफी मजबूत हैं और पार्टी को ये मुकाम केवल मुलायम सिंह या अखिलेश यादव ने नहीं बल्कि इस पार्टी की नींव को यूपी में शिवपाल यादव ने मजबूत किया है। शिवपाल यादव के अथक प्रयासों से पार्टी ने लगभग 20 सालों तक यूपी की सत्ता को संभाला है लेकिन काफी समय से यादव परिवार में सब कुछ ठीक नहीं है। परिवार बिखरता जा रहा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 से पहले अखिलेश यादव ने जनता को यह दिखाने की कोशिश की कि उनकी पार्टी में सब कुछ ठीक है लेकिन चुनाव के बाद ही चाचा-भतीजे के बीच के मन मुटाव की झलक देखने को तब मिली जब विधायक दल की बैठक में अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को नहीं बुलाया। इस बात से खफा होकर शिवपाल यादव दिल्ली मुलायम सिंह से मिलने उनके आवास पहुंचे। भतीजे की अनदेखी चाचा को खल रही थी। इस दर्द को शिवपाल यादव ने अपने भाई मुलायम सिंह से साझा किया। मुलायम सिंह और शिवपाल की मुलाकात के बाद भी अखिलेश और शिवपाल के रिश्तों में तनाव बरकरार रहा।

शिवपाल यादव की भाजपा में शामिल होने की अटकलें

लगातार बढ़ती नराजगी के बाद यह भी चर्चा होने लगी कि शिवपाल यादव भाजपा की ओर रूख कर सकते हैं। अभी तक कोई अधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है लेकरि शिवपास ने कुछ ऐसा करना शुरू कर दिया है जिससे यह कयास लगाये जाने लगे हैं और अफवाहों को हवा मिल गयी है। समाजवादी पार्टी से कथित तौर पर नाराज शिवपाल सिंह यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा का ट्विटर पर अनुसरण (फॉलो) करना शुरू कर दिया, जिससे उनके भाजपा के करीब आने की अटकलों को और बल मिला है।

अखिलेश यादव ने पिता मुलायम से की मुलाकात

इस बीच, समाजवादी पार्टी (सपा)के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दिल्घ्ली में अपने पिता और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की है। हालांकि, पिता-पुत्र के बीच चली बैठक में किन बिंदुओं पर चर्चा हुई, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। माना जा रहा है कि बदलती परिस्थितियों को लेकर अखिलेश यादव ने अपने पिता से बातचीत की। सपा सूत्रों ने बताया कि अखिलेश-मुलायम की मुलाकात दो घंटे तक चली। दरअसल, राजनीतिक हलकों में इस नये कदम (सोशल मीडिया पर भाजपा नेताओं का अनुसरण) को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी -लोहिया (पीएसपीएल) के प्रमुख शिवपाल यादव के सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को छोड़कर भाजपा में जाने की दिशा में एक और कदम के रूप में देखा जा रहा है।

शिवपाल ने नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और दिनेश शर्मा को किया फॉलो

सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में तनाव की खबरों के बीच शिवपाल यादव द्वारा हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से की गई मुलाकात के बाद अटकलों को बल मिला था। इस नये कदम की पुष्टि करते हुए पीएसपीएल के प्रवक्ता दीपक मिश्रा ने शनिवार को कहा कि नए साल में कुछ नया होना चाहिए। प्रवक्ता ने कहा, ‘‘ शिवपाल जी ने हिंदू नव वर्ष का पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को ट्विटर पर फॉलो करना शुरू कर दिया।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या इस कदम को उनके भगवा खेमे में जाने की संभावना के रूप में देखा जाए?
अखिलेश से भाव न मिलने पर भगवा खेमे की ओर बढ़े शिवपाल यादव?

इस पर मिश्रा ने कहा कि वह संभावनाओं से इंकार नहीं करते। उन्होंने अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में कहा कि राजनीति में संभावनाएं हमेशा जीवित रहती हैं। शिवपाल सिंह यादव के ट्विटर हैंडल के अनुसार वह वर्तमान में बौद्ध आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा, भारत के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री कार्यालय और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय सहित 12 ट्विटर हैंडल का अनुसरण कर रहे हैं। मिश्रा ने यह भी कहा कि शिवपाल जी पहले से ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी का सोशल मीडिया मंच पर अनुसरण कर रहे थे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच दूरियां तब से बढ़ रही हैं जब शिवपाल को 26 मार्च को नव निर्वाचित सपा विधायकों की बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था। शिवपाल यादव प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के प्रमुख हैं, लेकिन उन्होंने सपा के साइकिल चिह्न पर हाल ही में संपन्न विधानसभा का चुनाव लड़ा था। वह गत सोमवार को अखिलेश यादव द्वारा बुलाई गई विपक्षी गठबंधन की बैठक में शामिल नहीं हुए थे और एक विधायक के रूप में शपथ लेने में देरी की थी।

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