संदेशखली कांड में तृणमूल सरकार के आचरण को उचित नहीं ठहराया जा सकता। उसे ऐसे गंभीर आरोप के मामले में अधिक तत्परता दिखानी चाहिए। विपक्षी प्रतिनिधिमंडलों को घटनास्थल पर जाने से रोकना तो सिरे से आपत्तिजनक है। पश्चिम बंगाल का संदेशखली कांड ममता बनर्जी की सरकार पर एक गहरा दाग बनता जा रहा है। जिस तरह राज्य सरकार ने विपक्षी प्रतिनिधिमंडलों को इस गांव में जाने से रोका है, उससे यह धारणा और गहराई है कि वह कुछ छिपाना चाहती है। इस कांड में गंभीर आरोप तृणमूल कार्यकर्ताओं पर लगे हैं। उत्तर 24 परगना के गांव संदेशखाली की दर्जनों महिलाओं ने तृणमूल सदस्यों पर यौन उत्पीडऩ के संगीन आरोप लगाए हैं। इन महिलाओं के सामने आने के बाद आठ फरवरी को से वहां विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
महिलाओं ने इल्जाम लगाया है कि तृणमूल कांग्रेस से जुड़े शेख शाहजहां और उसके कथित गिरोह ने यौन उत्पीडऩ करने के अलावा उनकी जमीन के बड़े हिस्से पर जबरन कब्जा भी कर लिया है। गांव के कई लोगों ने आरोप लगाया है कि वहां पुरुषों को तृणमूल कांग्रेस की बैठकों में शामिल होने के लिए मजबूर किया जाता था। अगर कोई इससे इनकार करता था, तो उनकी पत्नियों को धमकी दी जाती थी। शेख शाहजहां स्थानीय जिला परिषद के सदस्य भी हैं। जनवरी में जब ईडी की टीम उनके घर पर छापेमारी के लिए पहुंची, तब उनके समर्थकों ने ईडी के अधिकारियों पर हमला कर दिया था।
ईडी की टीम कथित राशन घोटाले से संबंधित मामले में उनके घर पर पहुंची थी। महिलाओं ने शेख शाहजहां के सहयोगियों शिबू हाजरा और उत्तम सरदार पर भी यौन उत्पीडऩ में शामिल होने का आरोप लगाया है। सरदार को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि हाजरा फरार है। मुमकिन है कि भारतीय जनता पार्टी ने राजनीतिक मकसद से इस कांड को बहु प्रचारित किया हो। मसलन, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस के 12 फरवरी को संदेशखाली का दौरा करने को लेकर उठे सवाल वाजिब हैं। राज्यपाल ने उत्पीडऩ का दावा करने वाली महिलाओं से मुलाकात की थी। इसके बावजूद तृणमूल कांग्रेस के आचरण को उचित नहीं ठहराया जा सकता। उसे ऐसे गंभीर आरोप के मामले में अधिक तत्परता दिखानी चाहिए थी। विपक्षी प्रतिनिधिमंडलों को घटनास्थल पर जाने से रोकना तो सिरे से आपत्तिजनक है। ऐसे कदमों से पार्टी का दामन अधिक दागदार होता जाएगा।
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