देहरादून। उत्तराखंड में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने है। सत्तारूढ़ भाजपा हो या फिर कांग्रेस, दोनों ही दलों में इस वक्त सियासी उथल-पुथल लगातार जारी है। कांग्रेस भी लगातार अंदरूनी कलह से जूझ रही है। राज्य में पार्टी के वरिष्ठ नेता हरीश रावत हाशिए पर चल रहे हैं। हाल में ही हरीश रावत ने ट्वीट कर यह कह दिया था कि राजनीति से विश्राम लेने की जरूरत है। उनके इस ट्वीट के बाद उत्तराखंड कांग्रेस में चल रही अंदरूनी कलह एक बार फिर से सामने आ गई। उत्तराखंड में अंदरूनी कलह और खेमेबाजी की वजह से आलाकमान भी पशोपेश की स्थिति में है। नेतृत्व यह तय नहीं कर पा रहा है कि उसे सीएम उम्मीदवार के साथ चुनाव में उतरना चाहिए या फिर बिना किसी चेहरे के।
हालांकि हरीश रावत लगातार यह कह रहे हैं कि पार्टी को सीएम उम्मीदवार के चेहरे पर ही चुनाव मैदान में उतरना चाहिए वरना यह लड़ाई नरेंद्र मोदी बनाम कांग्रेस हो जाएगी जिसकी वजह से पार्टी को नुकसान होगा। वहीं, उत्तराखंड के ही कांग्रेस के कई नेता हरीश रावत के इस बयान को उनकी स्वार्थ मान रहे हैं। कई नेताओं का यह मानना है कि हरीश रावत सिर्फ अपना देख रहे हैं। वह राज्य में पार्टी के बारे में नहीं सोच रहे हैं। कांग्रेस के ही कई नेताओं ने यह दावा किया है कि भाजपा के कई वरिष्ठ नेता पार्टी में शामिल होना चाहते हैं लेकिन हरीश रावत उन्हें आने नहीं देना चाह रहे। वर्तमान स्थिति में देखें तो उत्तराखंड कांग्रेस में फिलहाल हरीश रावत की स्वीकार्यता कम हुई है। यही कारण है कि कई नेता भले ही मीडिया में उनके खिलाफ ना बोल रहे हो लेकिन पार्टी की बैठकों में लगातार बोल रहे हैं।
माना यह भी जा रहा है कि वर्तमान में उत्तराखंड के कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव से फिलहाल हरीश रावत के रिश्ते अच्छे नहीं है। हालांकि हरीश रावत के ट्वीट के बाद कांग्रेस में हड़कंप मचा तो आलाकमान सक्रिय हो गया। आनन-फानन में हरीश रावत को दिल्ली बुलाया गया और गतिरोध समाप्त करने की कोशिश की गई। आलाकमान से मुलाकात के बाद गतिरोध समाप्त होने का संकेत देते हुए नेता हरीश रावत ने कहा कि वह राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रचार अभियान का नेतृत्व करेंगे और पार्टी आला कमान के फैसले सभी को स्वीकार्य होंगे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रावत से तथा प्रदेश कांग्रेस के अन्य नेताओं से मुलाकात कर मतभेदों को सुलझाने का प्रयास किया।